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अश्वि॑ना वाजिनीवसू जु॒षेथां॑ य॒ज्ञमि॒ष्टये॑। हं॒सावि॑व पतत॒मा सु॒ताँ उप॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśvinā vājinīvasū juṣethāṁ yajñam iṣṭaye | haṁsāv iva patatam ā sutām̐ upa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अश्वि॑ना। वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू। जु॒षेथा॑म्। य॒ज्ञम्। इ॒ष्टये॑। हं॒सौऽइ॑व। प॒त॒त॒म्। आ। सु॒तान्। उप॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:78» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजिनीवसू) विज्ञानक्रिया को वसानेवाले (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक जनो ! आप लोग (इष्टये) इष्ट सुख की प्राप्ति के लिये (यज्ञम्) विज्ञान की सङ्गतिमय यज्ञ का (आ) सब प्रकार से (जुषेथाम्) सेवन करिये तथा (हंसाविव) दो हंसों के समान (सुतान्) पुत्र के सदृश वर्त्तमान शिक्षा करने योग्य शिष्यों के (उप) समीप (पततम्) प्राप्त हूजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । उपदेशक जन सम्पूर्ण शिक्षा करने योग्य मनुष्यों को पुत्र के सदृश मान कर और सब जगह भ्रमण कर के सत्य उपदेश से कृतकृत्य करें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वाजिनीवसू अश्विना ! युवामिष्टये यज्ञमा जुषेथां हंसाविव सुतानुप पततम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (वाजिनीवसू) यौ विज्ञानक्रियां वासयतस्तौ (जुषेथाम्) (यज्ञम्) विज्ञानसङ्गतिमयम् (इष्टये) इष्टसुखप्राप्तये (हंसाविव) (पततम्) (आ) (सुतान्) पुत्रवद्वर्त्तमानान् शिक्षणीयान् शिष्यान् (उप) ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । उपदेशकाः सर्वान् शिक्षणीयान् मनुष्यान् पुत्रवन्मत्वा सर्वत्र भ्रमित्वा सत्योपदेशेन कृतकृत्यान् कुर्वन्तु ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. उपदेशक लोकांनी संपूर्ण शिक्षण घेण्यायोग्य माणसांना पुत्राप्रमाणे मानून सर्व स्थानी भ्रमण करून सत्याचा उपदेश करून कृतकृत्य करावे. ॥ ३ ॥